स्वर्ग की बात लगभग सभी धर्मो में होती है। और जब भी बात स्वर्ग की आती है तो हमें सदैव एक आकर्षण लगी रहती है स्वर्ग को जानने की , वहा जाने की। स्वर्ग को लेकर हमारे मन में कई सवाल उत्पन होते है की वह क्या है ? कैसा है? कहा है ? वहा कैसे जाया जा सकता है ?
तो आखिर स्वर्ग है क्या ? आइए जानते है। स्वर्ग कोई कल्पना नहीं है वो वास्तविकता है। स्वर्ग एक ऐसी दुनिया है जहा सुख, शांति, और सन्तुष्टता सर्वत्र फैली हुई होती है। दुःख अशांति का नाम निशान नहीं होता है। वहा की प्रकृति अति सुन्दर होती है। अति सुन्दर माना हर ऋतु properly syncronized way में चलती है। अभी के समय में जैसे प्रकृति में कभी हलचल है वैसे वहा नहीं होता, वहा हर मौसम अपने निर्धारित समय पर आती है और जाती है। और वहा यहाँ के जैसे अति गर्मी या अति ठंडी नहीं होती। थोड़ी थोड़ी आसानी से सहन हो सके उतनी ठंडी और गर्मी होती है। ईश दुनिया में रहने वाले लोगो के पास अथाह धन सम्पदा होती है। वहा लोग आपस मे पूर्णतः मैत्रीभाव से रहते है, और वहा किसी प्रकार के वैरभाव का नाम निशन नही होता।
लेकिन आज के ज़माने में हम सोचे तो हमें ये कल्पना मात्र लगता है परन्तु ऐसा नहीं है स्वर्ग वास्तविकता है। स्वर्ग के लिए कई नाम है और ये नाम ही स्वर्ग का वर्णन करते है और उसके वास्तविक होने का संकेत भी देते है। स्वर्ग को सतयुग कहा जाता है। सत माना सत्य और युग माना समय। अर्थात ऐसा समय जो संपूर्ण सत्य हो और ऐसी दुनिया जहा रहने वाले मानव अपने सत्य स्वरुप या सत्य स्वाभाव में रहते हो। अगर केवल स्वर्ग शब्द पर ही ध्यान देवे तो स्वर्ग दो अक्षरों को मिलाकर के बनता है - स्व + अर्क। स्व माना 'मैं आत्मा' और अर्क माना सार (essence)। तो एसी जगह जहा मुझ आत्मा में रहे सात गुणों का अर्क माना essence हो वो हो गया स्वर्ग। यहां एक और बात समझनी है, नर्क शब्द को अलग करे तो होगा - न + अर्क यानी एसी दुनिया जहां मुझ आत्मा के सात गुणों का सार (essence) नहीं है। फिर स्वर्ग को English में Paradise कहा जाता है। Paradise माना एक ऐसी जगह जो perfect है। जहा कोई खराबी नहीं है।
![A day in heaven Satyuga](https://static.wixstatic.com/media/1e389d_10339b8b24744eb9b5937064137aee05~mv2.jpg/v1/fill/w_980,h_653,al_c,q_85,usm_0.66_1.00_0.01,enc_auto/1e389d_10339b8b24744eb9b5937064137aee05~mv2.jpg)
तो अब सवाल ये उठता हे कि स्वर्ग बनता कैसे है ? जब बात स्वर्ग बनता कैसे है ये आए तब ये वाक्य याद करना चाहिए, " जैसा मन वैसी सृष्टि "। तो स्वर्ग जैसी perfect दुनिया बनती तभी है जब वहा के रहने वाले लोगो के मनमे स्वर्ग हो। मतलब वहा के रहने वाले लोगो का मन और स्वभाव सात गुण से बना हो। वो सात गुण है - पवित्रता, प्रेम, आनंद, सुख, शांति, ज्ञान, शक्ति । जब लोगो का मन और स्वभाव इन सात गुणों वाला हो और पाँच विकार - काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार का नाम निशान न हो, ऐसे लोग अपने सत्य स्वभाव में होते है। सत्य स्वभाव माना आत्मा का (जो हम सभी है) अपने सात गुण के स्वरुप में होना। और जहा लोग ऐसे गुणवान हो तो आसपास की दुनिया में अपने आप ये सात गुणों का सार व्यापक रहता है। और ये सत्य है ... ये जो दुनिया है उसका रूप मानव के मन और स्वभाव को दर्शाता है। For eg. आज से 40 - 50 साल पहले लोगो के मन में छल, कपट, काम, लोभ कम था तो दुनिया भी मैत्रीभाव वाली थी। उस वक्त मानव का मन आज के समय से ज्यादा शांत और संतुष्ट हुआ करता था तो प्रकृति भी अच्छी थी। आज मानव का मूड हर सेकंड बदलता रहता है तो सारी ऋतु भी जल्दी से बदल रही है और मानव अति क्रोधी हो गया होने के कारन प्राकृतिक आपदाए अधिक हो गयी है। तो जैसे अभी मानव के मन और स्वभाव के हिसाब से दुनिया बनी है वैसे स्वर्ग भी मानव के मन और स्वभाव का सतोप्रधान अर्थात गुणवान बनने से ही बनता है।
![Heavenly world Satyuga](https://static.wixstatic.com/media/1e389d_4163295f8cf54aa69ba4c375ef18e4d0~mv2.jpg/v1/fill/w_980,h_653,al_c,q_85,usm_0.66_1.00_0.01,enc_auto/1e389d_4163295f8cf54aa69ba4c375ef18e4d0~mv2.jpg)
तो अभी सवाल ये उठता है की अगर स्वर्ग का होना या न होना मानव के मन और स्वभाव पर आधारित है तो स्वर्ग है कहा ? क्योकि आज तक तो हम समझते थे की वो कही आसमान में है। तो स्वर्ग कही आसमान में होता है या इसी धरती पर ? ? ?
जानेंगे अगले ब्लॉग में .......
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