स्वर्ग को लेकर कई मान्यताएँ और कल्पनाए है। जब हमे पूछा जाता है की स्वर्ग कहा है? तो हम कह देते है की वो कही आसमान में है। या फिर जब कोई गुजर जाता है तो हम कहते है की वो स्वर्ग में गये। तो क्या स्वर्ग आसमान में है या इस धरती पर अथवा कही और ही है? और क्या मरने के बाद कोई दूसरी ही स्वर्गीय जगह पर हम चले जाते है या इसी धरती पर रहते भी स्वर्ग में रहा जा सकता है? आइये जानते है।
तो जैसेकि हमने पिछले blog - 'स्वर्ग क्या है?' में जाना की जैसा मन वैसी श्रुष्टि अर्थात हमारा मन अगर स्वर्ग हो तो आसपास की दुनिया अपने आप स्वर्ग बन जाती है। कहने का मतलब यह है की जब मानव का मन और स्वाभाव सिर्फ और सिर्फ सात गुणों वाला हो और विकार का मन और स्वभाव पर जरा सा भी प्रभाव न हो तो मानव के आसपास की दुनिया स्वर्ग बन जाती है। स्वर्ग की जब भी हम कल्पना करते है तब हम कहते है की वो अत्यंत सुखमय और शांतिपूर्ण दुनिया है। तो यह सुख और शांति वह आयी कैसे? अगर हम गौर करे तो ये जाना जा सकता है की ये सुख और शांति मानव में रहे सात गुणों में से ही एक एक गुण है। तो स्वर्ग में रही सुख और शांति मानव के भीतर रहे गुणों का सार ही तो है।
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सोचो कोई संपूर्ण निर्विकारी मनुष्य हो - जिसके स्वाभाव में क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, वगेरे कोई अवगुण न हो और जो प्रेम, शांति, पवित्रता और सुख की मूरत हो... ऐसे व्यक्ति से मिलकर लगता है न की हम किसी स्वर्ग के देवता से मिल रहे है। तो जब कोई एक ऐसे व्यक्ति से मिलकर स्वर्ग का अनुभव होता हो तो सोचो धरती पर रहने वाले तमाम मनुष्य ही ऐसे संपूर्ण निर्विकार बन जाये तो? जब प्रत्येक मनुष्यो में से विकार नष्ट हो जाये और केवल गुण ही गुण रह जाये तो दुनिया में से दुःख, अशांति, वगेरे अपने आप मिट जाती है और बचती है एक सुखमय और शांतिपूर्ण दुनिया जिसे हम स्वर्ग कहते है।
तो इस हिसाब से तो स्वर्ग इसी धरती पर हुआ, न की कही आसमान मे। और स्वर्ग मे जाया भी इसी धरती पर रहते ही जा सकता है, न की मरने के बाद। पर आज के समय को देखे तो सब यही कहेंगे की ऐसे हर एक व्यक्ति कहा गुणवान और संपूर्ण निर्विकारी होने वाले है तो ये धरती स्वर्ग होने से रही... लेकिन ऐसा नहीं है। एक समय था जब इसी धरती पर स्वर्ग था और तब सभी मनुस्य भी संपूर्ण निर्विकारी थे। देखो हम आज भी अटलांटिस, सोने की द्वारिका वगेरे को याद करते है ना। आज भी हमे इनके बारे में जानने की दिलचस्पी है, वहा जाने की, वहा रहने की इच्छा होती है ना...
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तो ये अटलांटिस, सोने की द्वारिका, वगेरे स्वर्ग के ही भिन्न भिन्न नाम है। और उनमे हमारा लगाव इसीलिए है क्योकि एक समय में हमने उसे देखा है, हम वहा रहे है। आम तोर पर हम याद उसी को करते है जिसे हम जानते हो। हम जब नए घर में शिफ्ट होते है तब पुराना घर हमे याद पड़ता है ना, तो स्वर्ग का भी ऐसे ही है। हम वहा रहे हुए है इसीलिए वो दुनिया हमे याद आती रहती है। अब सवाल यह उठता है की इसी धरती पर स्वर्ग था तो वो कहा गया? तो हर एक अच्छी चीज़ वक्त बीतते बिगड़ जाती है, पूरानी हो जाती है इसी प्रकार समय बीतते बीतते हम मनुष्यो में जो गुण भरे पड़े थे वो कम होते गए और विकार आते गए। और हम मनुष्यो में आये इस परिवर्तन के साथ दुनिया भी परिवर्तन होती गयी और आज दुनिया स्वर्ग नहीं रही।
परन्तु ऐसा नहीं है की वापस धरती को स्वर्ग बनाया नहीं जा सकता। जैसे पूरानी चीज को रेनोवेट कर बिलकुल नए जैसा बनाते है वैसे इस धरती को भी फिरसे स्वर्ग बनाया जा सकता है।
ये जान कर हम सभी को दिल होगी की अगर धरती फिरसे स्वर्ग बन सकती हो तो हमे उसे स्वर्ग जरूर बनाना है और स्वर्ग में ही रहना है। ये भी ख्याल आएगा की फिरसे स्वर्ग में रहने मिले तो कितना अच्छा। आता है न ऐसा ख्याल... तो दिल में ये भी सवाल जरूर उठेगा की फिरसे स्वर्ग को लाया कैसे जा सकता है? या फिरसे स्वर्ग में कैसे जा सकेंगे ?...
जानेंगे अगले ब्लॉग मे....
To be continued....
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