शांति! ये शब्द है बिलकुल छोटा सा पर जब शांति को पाने की बात आये तो ये कार्य बहुत बड़ा और कठिन लगता है। आज के समय में लोग शांति पाने के लिए क्या कुछ नहीं करते है - घूमने जाते है, नई नई एक्टिविटीज करते है,वीकेंड पे सेल्फकारे में अपने आप को व्यस्त करते है और भी कई चीज़े करते रहते है। लेकिन इतने प्रयत्नों के बावजूत भी स्थायी शांति मिलती नहीं है। इसके आलावा आजकल शांति के लिए ध्यान का प्रयोग करते है। ध्यान में बैठते समय स्वाश पर फोकस कर मन के संकल्पो को रोकने की कोशिश करते है। इससे कभी हद तक मन शांत तो होता है लेकिंग ये तरीका काफी कठिन है। तो क्या कोई आसान तरीका है शांति पाने का?
आसान तरीका है... इसमें बस ज्ञान प्राप्त करना है और किसीको बार बार याद करना है। जैसे हम हमारे माता पिता को या अन्य प्रियजनों को याद करते है वैसे ही किसीको याद करने से हम शांति की मूरत बन सकते है। वो ज्ञान क्या है और किसको याद करने से शांति को पाय सकते है ? आईये जानते है।
तो शांति को पाने के लिए क्या ज्ञान जरुरी है? देखो हमे पता है, हम कहते भी रहते है की शांति हमारे अंदर ही है फिर भी हम उसे पाने के लिए बाह्य चीज़ो पर निर्भर रहते है। जैसे की कोई बच्चा जब छोटा होता है तब उसके माता पिता सोचते है की मेरा बच्चा बच्चा अच्छा पढ़े, बड़ा होकर अच्छा कमाए तो उसके और हमारे जीवन में शांति रहेगी। बच्चा भी फिर वही सोचता है की अगर मेरी कामय अच्छी होगी तो मुझे शांति रहेगी। तो इस तरह पूरा जीवन हम शांति पाने के लिए दौड़ते रहते है। हम बोलते जरूस है की शांति हमारे भीतर ही है लेकिन फिर भी शांति हम बहार से ढूंढने की कोशिश करते रहते है - ऐसा करेंगे तो शांति मिलेगी, वैसा करेंगे तो शांति मिलेंगी। तो ऐसा क्यों होता है ? ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि हमे - शांति है क्या ? और अगर शांति हमारे भीतर है तो वो है भीतर है कहा ? इसका ज्ञान नहीं है।
शांति क्या है और कहा है ये जानने से पहले ये जानना जरुरी है की हम एक चैतन्य आत्मा है, एक शक्ति या point of light कहो ये है। और ये शरीर हमारा वस्त्र है। जब हम खुदको आत्मा समझते है तब हमे ये ज्ञात होता है की शांति मेरे अंदर ही बसा एक गुण है जो सदा मेरे भीतर रहता ही है। बस वो मुझे दिखाय नहीं देता या महसूस इसलिए नहीं होता क्योकि मेने अपने आप को शरीर समज लिया है। और ये जो अवगुण है अशांति, क्रोध, लोभ, मोह, वगेरे ये आत्मा का नेचर नहीं है। हम समझते है की गुस्सा आना, टेंशन आना, ये नेचुरल है परन्तु ऐसी नहीं है। हम जो सब आत्माए है वह सात गुणों की बानी हुई है - शांति, प्रेम, पवित्रता, सुख, आनंद, ज्ञान और शक्ति बस। और कोई अवगुण नहीं है हम आत्माओ में। बस खुदको शरीर मन लेने के कारन हम सारे अवगुणो को भी अपना कह देते है। ये इस प्रकार है - अगर हम शरीर पर पहने कपड़ो को 'में' समज ले, की ये कुरता में हु तो इस्पे लगे दाग़ भी मेरा हिस्सा बन जायेंगे। परन्तु अगर मुझे पता हो की ये कुरता तो सिर्फ एक वस्त्र जो पहना जाता है तो उस पर लगे दाग़ भी अपने नहीं रहेंगे। तो जैसे कुरता शरीर का वस्त्र है, शरीर अलग है वैसे शरीर आत्मा का वस्त्र है और शरीर से जुड़े अवगुण भी आत्मा का हिस्सा नहीं है।
तो शांति पाने का पहला कदम है ज्ञान फिर दूसरा कदम है नकारात्मकता और अवगुण रूपी परदे को हटा करके हम आत्मा में रही शांति को बहार निकलना। तो इसके लिए क्या किया जाये ? तो यहाँ दूसरा स्टेप आता है योग...
योग माना क्या? यहाँ जो योग की बात है वो कोई आसान की बहत नहीं। यहाँ योग का अर्थ है कनेक्शन या जुड़ना। किससे जुड़ना? कोई ऐसा जो हमारे अंदर रही शांति को फिरसे जागृत कर सके। याद हे ब्लॉग के आरम्भ मेने शांति पाने के लिए किसको याद करने की बात की थी... बस इसकी ही स्पष्टी करने जा रही हु...
हमे परमात्मा जो की शांति के सागर है उससे जुड़ना है यही उनसे सम्बन्ध जोड़ना है और उन्हें याद करना है। याद कैसे करना है? कोई भजन, कीर्तन, व्रत, उपवास, आदि नहीं बस अपने को आत्मा समाज ये विसुअलिज़े करना होता है की में आत्मा अपने पिता परमात्मा के पास बैठी हुई हु या कोई काम कर रहे है तो ये सोचना और अनुभव करना है की में अपने पिता परमात्मा के साथ ये कार्य कर रही हु। For eg. अगर में भोजन कर रही हु तो, ये अनुभव करना है की में अपने पिता परमात्मा के हाथो से खा रही हु। तो ऐसे ऐसे उन्हें कभी पिता के रूप में, कभी माँ के रूप, में कभी भाई या कभी बेहेन के रूप में बार बार याद करेंगे तो हमारे अंदर छुपी शांति और इसके साथ साथ कई और गुण भी जागृत होने लगेंगे।
तो सोचो ये तरीका कितना सहज है। कही कोने बैठ कर के स्वास पर ध्यान केंद्रित करने की या कोई कठिन आसान या फिर एक टांग पर खड़े रहने जैसी मुश्किल चीज़े करने की जरुरत ही नहीं। बस चलते फिरते हस्ते खेलते शनती जगृत हो जाती है। और वो परमात्मा को याद करने से कैसे होता है वो पता है? ये जानने के लिए हमारे मोबाइल फ़ोन का उदहारण लेते है - तो जब फ़ोन डिस्चार्ज हो जाता है यानि की उसकी बैटरी उतर जाती है तब हम उसे चार्ज करने के लिए चार्जिंग पॉइंट से जोड़ते है और चार्जिंग पॉइंट अपने अंदर रही इलेक्ट्रिसिटी फ़ोन में ट्रांसफर करता है। यहाँ जैसे चार्जिंग पॉइंट में अथाह इलेक्ट्रिसिटी है वैसे परमात्मा शांति के सागर है। शांति के सागर माना उन्होके पास अथाह शांति की शक्ति है। और जितना जितना हम याद के द्वारा उन से जुड़ते है उतनी बार - एक तो वे हमारे अंडर रही शांति को जागृत करते है और ऊपर से एक्स्ट्रा शांति की शक्ति ट्रांसफर करते है। जैसे फ़ोन चार्जिंग पॉइंट से कनेक्ट होता है तो इलेक्ट्रिसिटी फ्लो होकर फ़ोन में भर जाती है वैसे आत्मा जब परमात्मा को याद कर उनसे जुड़ती है तो परमात्मा में रही शांति की शक्ति फ्लो होकर आत्मा में भर जाती है।
तो इस प्रकार हम ज्ञान और योग का अपने जीवन में समावेश करके शांति को पा सकते है।
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