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कैलोरी से परे: आंतरिक तालमेल के लिए खाने की परहेज

Pal Patel

हम अक्सर भोजन के भौतिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, अपने शरीर को पोषित करने के लिए पौष्टिक भोजन खाते हैं। लेकिन क्या आपने उस भोजन पर विचार किया है जो हम अपनी इंद्रियों के माध्यम से खाते हैं, जो हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है? ये एक ऐसी खुराक है जो हम खाते जरूर है लेकिन हमें वो दिखती नहीं है। समय आ गया है कि हम ध्यान से भोजन करने की अपनी परिभाषा का विस्तार करें ताकि पोषण के इस अदृश्य स्रोत को अपने जीवन में शामिल किया जा सके।


जब भी हम कहते हैं कि आप जो खाते हैं, उसे ध्यान में रखें, हम तुरंत सही भोजन चुनने के बारे में सोचते हैं जो हम अपने मुख से खाते हैं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि जब खाने की बात आती है, तो अलग-अलग प्रकार का भोजन हो सकता है? जिसे हम मुंह से नहीं खाते हैं, लेकिन हम इसका सेवन करते जरूर हैं। जिस तरह से सही भोजन हमारे शरीर को पोषण देते हैं, उसी तरह हम जो देखते हैं और सुनते हैं, उसका भी हमारे मानसिक और शारीरिक स्वाथ्य़ पर असर पडता है।


जैसे भोजन हमारे शरीर को पोषीत करता है वैसे हम जो देखते और सुनते हैं, वह हमारे दिमाग को पोषीत करता है। हर एक तस्वीर जो हम देखते है और हर एक शब्द जो हम सुनते है वो हमारे मस्तिष्क में गहरी छाप छोड़ती है जो हमारे विचारों और भावनाओं को आकार देती है। अपने मन को एक उपजाऊ खेत के रूप में कल्पना करें; नकारात्मक जानकारी अवांछित खरपतवार (weed/ जंगली घास) बन जाती है, जबकि सकारात्मक जानकारी स्वास्थ्य के बीज बोती है। जैसे एक बगीचे की हम देखभाल करते है, वैसे हम अपनी इंद्रियों के माध्यम से क्या "उपभोग" करते हैं यह चुनना हमारे विचारों की उपज को निर्धारित करना है। हम महसूस नहीं करते, लेकिन जो हम देखते और सुनते हैं, वह हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। यह कैसे होता है? जो कुछ भी हम देखते हैं या सुनते हैं, वह हमारे दिमाग पर छप जाता है। एक बार हमारे दिमाग पर ये छप जाता है, फिर हमारा दिमाग उन तस्वीर और शब्द को बार बार याद करता है। और इसके आधारीत हमारे मन के विचार बनते है। जितनी अधिक नकारात्मक जानकारी मन पर छपती है उतने ही नकारात्मक हमारे विचार होंगे, और जितनी अधिक सकारात्मक जानकारी हमारे मन पर छपती है, हमारे विचार अधिक सकारात्मक होंगे। अपने मन को मिट्टी के बर्तन की तरह समझें। अगर हम बर्तन के अंदर गंदा पानी डालते हैं तो इसके नल से किस तरह का पानी निकलेगा? गंदा... है ना... लेकिन अगर हम साफ पानी डालते हैं तो? हमें साफ पानी मिलेगा। यहां बर्तन से निकलने वाला पानी हमारे विचार हैं। तो, हम ध्यान रखें कि जिस तरह बर्तन के अंदर गंदा या साफ पानी डालने से परिणाम बदल जाता है उसी तरह सकारात्मक जानकारी का सेवन करेने से हमारे विचार सकारात्मक हो जाएंगे और नकारात्मक जानकारी का सेवन करने से हमारे विचार नकारात्मक होने लगेंगे। हम तुरंत अंतर महसूस नहीं करते हैं, लेकिन समय के साथ विचारों की गुणवत्ता न केवल भावनात्मक स्थिति बलकी हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी बड़ा प्रभाव डालती है। कैसे? आइए जानते हैं।


हमारी भावनात्मक स्थिति या सामान्य रूप से समय के साथ हमारा मूड हमारे मानसिक स्वास्थ्य को निर्धारित करता है। जितना हमारा मूड प्रसन्न और शांत होंगा, हमारा मानसिक स्वास्थ्य उतना हि ठीक रहेगा, लेकिन अगर हम ज्यादातर तनावग्रस्त, दुखी, गुस्से में, या किसी भी नकारात्मक भावनाओं से भरे रहें तो क्या होगा? मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा? क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी भावनात्मक स्थिति कौन निर्धारित करता है? हां, यह सही है कि हमारे विचार ही हमारे मूड को निर्धारित करते हैं। मान लो आप रातको एक क्राईम शो देखकर सो गए. फिर सुबह उठकर दफ्तर जाकर काम करने लगे। लेकिन आपका दिमाग, अभी भी उस शो को याद कर रहा हैं। इसके पात्रों और कथानक के बारे में सोचते सोचते आपको शो का एक नकारात्मक पात्र याद आया, जिसके लिए आपने शो को देखते समय तुरंत नफरत विकसित की थी। जबकि आप इस बारे में सोच रहे थे कि वह पात्र कितना बुरा था, आप अचानक आपको अपने एक सहकर्मी याद आ गए, जो विशेष रूप से उस पात्र के समान व्यवहार रखते हैं, और तुरंत अपने उस सहकर्मी को याद कर आपने नकारात्मक विचार पैदा करना शुरू कर दिया जो पूरे दिन आपके दिमाग में चलते रहे। अब शामको आपका मूड कैसा होगा? यह निश्चित रूप से एक सुखद या शांतिपूर्ण मूड नहीं होगा। इसके अलावा हम सभी ने कभी ना कभी काम से आने के बाद दिनभर में हुई कोई घटना को याद करते ये जरूर कहा होगा, "मैं गुस्सा क्यों हुआ? ऐसा क्यों हुआ?".... शायद इसलिए कि हमारा मूड गुस्से में था और इसके कारण हमने परिस्थिति को समजे बिना गुस्से से प्रतिकार दीया। तो उस समय हमारे मन में जो कुछ चल रहा था उसका परिणाम वह क्रोधी प्रतिक्रिया हो सकती है।


लेकिन इसके विपरीत अगर रात को सोने से पहले आपने कुछ आध्यात्मिक या कुछ भी सकारात्मक देखा, जो दूसरों के लिए प्यार और करुणाभाव रखना सिखाता हो। आप अगले दिन जाग गए, ऑफिस गए और फिर दिन भर सभी के लिए प्यार और करुणा के बारे में आपने जो सीखा और देखा, उसे याद किया। पिछली रात के उन दृश्यों को याद करते हुए, आपको एक ऐसे व्यक्ति याद आ गए जिसके साथ आपके बहुत अच्छे संबंध हैं, आपको एक चैरिटी याद आ गयी जिसके कारन किसी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी थी - ये सभी विचार आपके दिमाग मे पूरे दिन चलते रहे। अब आपका मूड कैसा होगा दिन के अंत में? खुश और शांतिपूर्ण। और अगर आपका हर दिन ऐसा हो तो आपका मानसिक स्वास्थ्य कैसा रहेगा? ठीक... ना। और पुरे दिन में आपका वर्तन कैसा होगा? कठिन परिस्थितियों में भी आपका वर्तन शांतिपूर्ण और खुशी से भरा रहेगाना।

 

समझने की बात ये है की हमारे विचार हमारे मूड और मानसिक स्वस्थ्य तय करने के साथ साथ हमारे शारीरिक स्वस्थ्य को भी प्रभावित करते हैं। कैसे? हम जिस तरह के विचार करते हैं, उसका हमारे शरीर पर भिन्न भिन्न प्रभाव पड़ता है। जब आप गुस्से में होते हैं या तनाव में होते हैं, तो क्या आपने कभी देखा है कि आप क्या महसूस करते हैं । यदि हम शारीरिक रूप से जो महसूस करते हैं, उस पर ध्यान दे, तो हम देख सकेंगे कि हमारा शरीर गर्म हो रहा है, हमें सिरदर्द भी हो सकता है, अगर क्रोध अति ज्यादा हो तो हमारा शरीर कांपना शुरू कर सकता है। तो इस तरह हमारे शरीर पर नकारात्मक विचार का प्रभाव बुरा पड़ता है। लेकिन जब हम खुश या शांतिपूर्ण विचार कर रहे हैं, तो हम ऊर्जावान और शारीरिक रूप से जीवंत महसूस करते हैं।

हममे से अधिकांश लोग दफतर से घर आने के बाद आपने आप को तनावपूर्ण और थका हुआ महसूस करते है, कभी कभी तो शिरदर्द भी होने लगता है। लेकिन क्या हमने कभी ये पता लगाने की कोशिश की की क्यों हम तनावपूर्ण हुए... ये पता लगाया की दिन के दौरान हमने किस तरह के विचार किये? अगर हम उन विचारों को याद करने की कोशिश करें तो हमे हमारे सिर दर्द, थकान, बेचैनी आदि का कारण पता लगेगा। और अगर हम थोड़ा और आगे बढ़कर इन विचारो का कारन जानने की कोशिश करे, तो हम जान सकेंगे की हमने जो देखा और सुना वो ही इनका कारन है। तो अगर हम नकारात्मक चीजे देखते और सुनते रहें और लंबे समय तक नकारात्मक विचार बनाते रहें, तो इससे शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की कई बीमारियां हो सकती हैं।


अंत में, याद रखें: आपकी आँखें और कान आपकी हेल्थ को निर्थारित करने वाले शक्तिशाली द्वार हैं। हम सभी बाह्य परिस्थितियों को कण्ट्रोल नहीं कर सकते, पर हमारे मनमे क्या चलने देना है ये अवस्य चुन सकते है। आइए हम एक सचेत मीडिया आहार विकसित करने का आह्वान करें, जो हम सब के मन को सौंदर्य, करुणा और सकारात्मकता से भर दे। इस सचेत और सकारात्मक आहार से न केवल अपने जीवन को प्रकाशित कर सकते है, बल्कि हम औरो के जीवन को प्रकाशित करने का माध्यम भी बन सकते है। तो आइये हम अपने मीडिया आहार पर ध्यान दे और उसे धीरे धीरे बदलते चले, और अपने जीवन को रोशन करे।

 

 

 

 

 

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