स्वर्ग के लिए ज्यादातर लोगो को दिलचस्पी रहती है। स्वर्ग के बारे में जानने की, वहा जाने की, वहा रहने की इच्छा हम सभी को होती है। होती है ना?... मुझे तो बहुत होती है। अभी हमने पिछले ब्लॉग पोस्ट में समजा की स्वर्ग होता क्या है और वो कहा है? हमने जाना की स्वर्ग इसी धरती पर हुआ करता था और काफी समय पहले सभी मनुष्य गुणवान और संपूर्ण निर्विकारी हुआ करते थे, तो दुनिया भी स्वर्ग थी। हमने ये भी जाना की समय बीतते बीतते मनुष्यो में रहे गुण कम होते गए और विकार आने लगे जिसके चलते दुनिया स्वर्ग नहीं रही। अब दुनिया स्वर्ग तो रही नहीं तो क्या इसे वापस स्वर्ग बनाया जा सकता है? और कौन इसे स्वर्ग बनाएगा? आइए जानते है...
जैसे हमने जाना स्वर्ग सभी मनुष्यो का संपूर्ण निर्विकारी और पूरा पूरा गुणवान बनने से बनता है। पर अभी के समय में तो ऐसा संपूर्ण निर्विकारी मनुष्य मिलना लगभग नामुमकिन है। हम सब को कभी ना कभी क्रोध, मोह, लोभ आता ही है। तो ऐसे में कोई ऐसा चाहिए जो सब को संपूर्ण निर्विकारी बनाकर के इस दुनिया को स्वर्ग बनावे। तो ऐसा इस दुनिया में है कौन? देखो ये भी समझने की बात है की दुनिया को पुनः स्वर्ग बनाने वाला कोई ऐसा होना चाहिए जो सदा गुणवान रहता हो, कोई ऐसा जिसमे कभी कोई विकार आते ही ना हो। क्योंकि जो खुद विकारी हो वो औरो को निर्विकारी बना कैसे सके? ये सोचने की बात है ना...
अगर हम ऐसे कोई व्यक्ति को ढूंढने जाये तो हमे ख्याल आएगा की शायद वो साधु, संत, सन्यासी, वगेरे हो सकते है। लेकिन वो नहीं है क्योकि अगर उन में से कोई होते तो दुनिया कबकी स्वर्ग बन गयी होती। लेकिन ऐसा तो हुआ है नहीं अभी तक। तो फिर कौन हो सकता है? वो और कोई नहीं बल्कि स्वयं भगवान है। क्योंकि इस पुरे ब्रह्माण्ड में एक भगवान ही है जो सदा गुणवान रहते है। भगवान ही है जो सदा सदा पावन भी रहते है। उसके साथ साथ कई ऐसे साबुत भी है जो ये बात की पुस्टि करते है की भगवान ही स्वयं आकर के इस दुनिया को पुनः स्वर्ग बनाते है।
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जैसे भारत में गया जाता है
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।"
संक्षिप्त में इसका अर्थ होता है जब भारत में अति धर्म ग्लानि का समय होता है तब भगवान आते है और पुनः सत धर्म की स्थापना करते है। तो ये सत धर्म क्या है जो भगवान पुनः स्थापित करते है? जब मनुष्य संपूर्ण निर्विकारी और पुरे पुरे गुणवान होते है उसे ही मनुष्य का अपने सत यानी सत्य धर्म में स्थित होना कहा जाता है। जब मनुष्य अपने सात गुणों को धारण कर जीते है उसे ही सच्चे धर्म पर चलना कहा जाता है और वो ही सत धर्म भगवान पुनः स्थापित करते है। अर्थात मनुष्यो को फिरसे गुणवान और संपूर्ण निर्विकारी बनाते है और मनुष्यो को ऐसा बनाकर के दुनिया को स्वर्ग बना देते है।
इसके आलावा भगवान को पतित पावन भी कहा जाता है। कभी सोचा ऐसा क्यों कहा जाता है और इसका अर्थ क्या है ? पतित पावन माना पतितो को पावन करने वाला। अभी पतित कौन? जब मनुष्य संपूर्ण निर्विकारी और पुरे पुरे गुणवान होते है तब उन्हें पावन कहा जाता है। फिर जब मनुष्य में विकार रूपी मेल चढ़ जाता है तो वे पतित बन जाते है। विकार रूपी मेल चढ़ जाने के कारन मनुष्य मेले हो जाते है तब उन्हें पतित कहा जाता। और वो ही पतितो को जो फिरसे पावन बनाता अर्थात विकार रूपी मेल को साफ़ कर उन्हें फिरसे स्वच्छ यानि गुणवान बनाता है उसे ही तो पतित पावन कहा जाता है।
तो ये दोनों बाते सिद्ध करती है की भगवन ही आकर सभी मनुष्यो को फिरसे संपूर्ण निर्विकारी बनाकर इस धरती को पुनः स्वर्ग बनाता है।
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